मौर्य काल के प्रशासन व्यवस्था के बारे में बताएं ?
मौर्य काल का प्रशासन चार भागों में विभक्त था
- केंद्रीय प्रशासन
- प्रांतीय प्रशासन
- नगरीय प्रशासन
- ग्राम प्रशासन
1. केंद्रीय प्रशासन – सत्ता का केंद्र राजा होता था राजा के हाथों में ही देश की जिम्मेदारी होती थी लेकिन राजा निरंकुश था इन पर मंत्री परिषदों का अंकुश लगता
मंत्री परिषद- मंत्री परिषद में मंत्रियों की कुल संख्या 12 से 20 हुआ करती थी और प्रत्येक मंत्री को 12000 पण वर्षिक वेतन दिया जाता था
2. प्रांतीय प्रशासन – मौर्य प्रशासन में पांच प्रति का उल्लेख मिलता है
प्रांत राजधानी
- उतरापथ तक्षशिला
- दक्षिणपथ स्वर्णागिरी
- अवंती उज्जयनि
- कलिंग तोशली
3. नगरीय प्रशासन – नगर का शासन 30 सदस्यों के द्वारा चलाया जाता था जो की एक मंडल स्वरूप थे यह 30 सदस्य 6 समितियां में विभक्त थे इसके द्वारा मिलकर शासन चलता था और प्रत्येक समिति में पांच पांच सदस्य होते थे
यह समितियां निम्नलिखित है
- शिल्प कला समिति
- वैद्देशिक समिति
- जनसंख्या समिति
- वाणिज्य समिति
- वस्तु निरीक्षक समिति
- कर समिति
4. ग्राम प्रशासन – ग्राम का मुखिया ग्रमीणी कहलाता था हम में एक प्रशासनिक अधिकारी होता था जिन्हें भुजक कहते थे
निष्कर्ष :- उपरोक्त सभी कथन हमें मौर्य प्रशासन की जानकारी देता है कि उसे समय मौर्य प्रशासन अधिक विकसित था और वहां के लोग संपन्न थे