भगवान महावीर स्वामी की जीवन परिचय
महावीर स्वामी का जन्म 540 ईसवी पूर्व में कुण्डग्राम में हुआ था । उनके पिता का नाम सिद्धार्थ था तथा माता का नाम त्रिशाला था इनके पिता एक क्षत्रिय राजा थे तथा इनकी मां त्रिशला चेटक की बहन थी जो लिच्छवि के राजा थे उनके बचपन का नाम वर्धमान था महावीर स्वामी के बड़े भाई का नाम नंदिवर्धन था उनके पिता ज्ञातृक कूल के सरदार भी थे जब महावीर स्वामी बाल अवस्था से निकले तब वह संन्यास जीवन धारण कर लिए तथा घर तथा परिवार का त्याग कर दिए महावीर स्वामी की शादी यशोदा के साथ हुई थी तथा उनकी दो पुत्रियां थी जिनका नाम अनुजा तथा प्रियदर्शनी था ।
महावीर अपने माता पिता की मृत्यु के बाद अपने बड़े भाई नंदिवर्धन से अनुमति लेकर अपना घर छोड़ दिया तथा सन्यास जीवन को धारण किया वह के ज्ञान की प्राप्ति के लिए इधर-उधर घूमते रहे बहुत समय के बीतने के पश्चात लगभग 12 वर्षों के बाद महावीर स्वामी को ज्ञान की प्राप्ति हुई ।
ज्ञान प्राप्ति के बाद महावीर जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर हुए तथा यह जैन धर्म के अंतिम तीर्थंकर भी हुए । महावीर स्वामी अपना उद्देश्य प्राकृत भाषा में दिया था तथा इनके सभी अनुयायी निग्रंथ कहलाए । महावीर के प्रथम अनुयायी उनके दामाद जामिल बने उन्होंने अपने शिष्य को 11 गणधरो में विभाजित किया । इनकी मृत्यु 72 वर्ष की अवस्था में 468 ईसवी पूर्व में पावापुरी में हो गई । इनका प्रतीक चिन्ह सिंह था महावीर स्वामी पुनर्जन्म एवं क्रमवाद में विश्वास करते थे ।
महावीर स्वामी की मृत्यु के बाद इनके दो महत्वपूर्ण शिष्य हुए स्थूलभद्र तथा भद्रबाहु इनकी मृत्यु के बाद जैन धर्म के दो संगति हुई तथा मगध में 12 वर्षों का अकाल पड़ा और भद्रबाहु अपने शिष्य को लेकर कर्नाटक चले गए परंतु स्थूलभद्र मगध में ही रुक गये । जब 12 वर्षों के बाद भद्रबाहु मगध वापस लौटे तो मगध के साधुओं के साथ उनका गहन मतभेद हो गया तथा जैन धर्म दो भागों में बट गया ।
श्वेतांबर
जो जैनी स्थूलभद्र के नेतृत्व में मगध में ही रुक गए वह सभी श्वेतांबर कहलाए । श्वेतांबर श्वेत वस्त्र धारण करते थे तथा यह कठोर तपस्या करते थे यह ज्ञान प्राप्ति के बाद भोजन ग्रहण करते थे तथा इसमें स्त्रियों के लिए भी मोक्ष की प्राप्ति के साधन थे ।
दिगम्बर
जो जैनी भद्रबाहु के नेतृत्व में कर्नाटक चले गए तथा 12 वर्षों के बाद पुनः मगध वापस लौटे, वे सभी दिगम्बर कहलाए । दिगम्बर नंगे ही रहा करते थे तथा यह सभी जैन धर्म के कठोर नियम का पालन करते थे । इनमें स्त्रियों के लिए कोई स्थान नहीं था यह लोग ज्ञान प्राप्ति के बाद कंद-मूल, फल आदि खाते थे इस प्रकार 540 ईसवी पूर्व से लेकर 468 ईसवी पूर्व के तक के काल को जैन धर्म का काल माना जाता है इस धर्म के संस्थापक ऋषभदेव थे परंतु इसके वास्तविक संस्थापक महावीर स्वामी को माना जाता है जो जैन धर्म के 24वें तथा अंतिम तीर्थंकर हुए ।
महावीर स्वामी के उपदेश 540 ईसवी पूर्व से लेकर 468 ईसवी पूर्व तक महावीर स्वामी का जीवनकाल था इनके जन्म के बाद जब यह अपनी बाल्यावस्था से प्रौढ़ अवस्था में आए तब इनका विवाह यशोदा के साथ हो गया लेकिन जैसे ही इनके माता-पिता की मृत्यु हो गई वे अपने बड़े भाई नंदी वर्धन से अनुमति लेकर सन्यास जीवन को धारण कर लिए तथा 12 वर्ष की कठिन तपस्या के बाद महावीर स्वामी को ज्ञान की प्राप्ति हुई तथा ज्ञान प्राप्ति के बाद इन्होंने अपने उपदेश देना शुरू किया इन्होंने अपने कई सारे उपदेश दिए इनके सारे उद्देश्य प्राकृत भाषा में थे ।