चंद्रगुप्त मौर्य की जीवनी एवं उनके उपलब्धियाँ | Chandragupta Maurya History In Hindi

चंद्रगुप्त मौर्य की जीवनी एवं उनके उपलब्धियाँ | Chandragupta Maurya History In Hindi

चंद्रगुप्त मौर्य की जीवनी

चंद्रगुप्त मौर्य का जन्म 345 ईसवी पूर्व में पाटलिपुत्र के मौर्य वंश के क्षत्रिय कुल में हुआ उनके पिता का नाम सूर्य तथा माता का नाम मुरा था । यह मौर्य वंश के संस्थापक थे । जब उनका बचपन समाप्त हुआ तो वह सर्वप्रथम नंद के सेना में भर्ती हो गए तथा चाणक्य की मदद से घनानंद को हराने में साक्षम हुए यूनानी आक्रमण में से ग्रस्त और मगध के अत्याचारी शासकों से त्रस्त जनता को मुक्ति दिलाने के लिए उन्होंने ब्राह्मण आचार्य चाणक्य की सहायता से अपना राज्य स्थापित किया ।

जब चाणक्य को घनानंद ने अपमानित कर दिया तब चाणक्य अपनी शिखा को खोल कर यह प्रतिज्ञा किया जब तक वह मगध साम्राज्य से नंद वंश का अंत नहीं कर देगा । तब तक वह अपने शिखा नहीं बांधेंगे , इसी बीच चाणक्य की मुलाकात चंद्रगुप्त से हुई तथा चाणक्य ने यह सोच लिया कि इसी बालों को वह इतना सक्षम बना देंगे कि वह नंद सेना का अंत कर देगा ।

इसी कारण से चाणक्य चंद्रगुप्त को लेकर अपने पाठशाला में तक्षशिला विश्वविद्यालय में लाएं तथा वहीं से उन्हें प्रशिक्षित करने लगे । वह चंद्रगुप्त को हर एक क्षेत्र में इतना प्रशिक्षित कर दिया कि वह अब नंद की सेना से अकेले ही लड़ सकता था अंततः 322 ईसवी पूर्व से चंद्रगुप्त ने नंद वंश के अंतिम शासक धनानंद को मार दिया तथा मगध की सत्ता से नंद वंश का खात्मा कर दिया और मगध की सत्ता पर एक नया वंश मौर्य वंश की स्थापना किया ।

चंद्रगुप्त मौर्य की उपलब्धियां

1) मगध विजय

चंद्रगुप्त मौर्य और चाणक्य ने मिलकर एक विशाल सेना का गठन किया और मगध पर आक्रमण किया और मगध को इसके अत्याचारी शासक धनानंद को पराजित कर मगध को मुक्त किया घनानंद और चंद्रगुप्त ने बीच भीषण संघर्ष हुआ तथा चंद्रगुप्त ने धनानंद को पराजित कर 321 ईसवी पूर्व में मगध का सम्राट बना ।

2) पंजाब विजय

चंद्रगुप्त की ख्याति मुक्तिदाता और विजेता के रूप में है उसने पंजाब और सिंध को यूनानी प्रभुत्व से मुक्त कराया उसने पश्चिम तोर सीमा प्रांत में विदेशी शासक के विरुद्ध लोगों को भड़काना आरंभ किया उसने पंजाब के लड़ाकू कबिलो की एक सेना संगठित की तथा उसने उन अनेक सेना सैनिक अभियान कर पंजाब पर विजय प्राप्त किया तथा अपने साम्राज्य का विस्तार सिंधु नदी तक किया

3) कश्मीर विजय

मगध के बाद चंद्रगुप्त ने कश्मीर पर आक्रमण किया वहां के राजा मलयकेतू तथा मलयकेतू को चंद्रगुप्त से पराजित पराजय स्वीकार करनी पड़ी । पराजय के बाद। मलयकेतू चंद्रगुप्त की बात नहीं मानी तो चंद्रगुप्त ने उसके समर्थकों को में फूट डाल दी जिससे उसकी शक्ति बहुत कम हो गई अंत में विवश होकर मलयकेतू ने चंद्रगुप्त से हार मान लिया तथा कश्मीर पर भी चंद्रगुप्त की विजय प्राप्त हुई ।

4) सेल्यूकस से संघर्ष

जिस समय चंद्रगुप्त अपने साम्राज्य का विस्तार कर रहा था उस समय सिकंदर की सेना आपसी प्रतिद्वंदिता एवं संघर्ष में व्यस्त थे । 312 से 11 ईसवी पूर्व तक सेल्यूकस अपने प्रतिद्वंदिता पर विजय प्राप्त कर चुका था । जिसने सिकंदर के साम्राज्य के अधिकांश भागों पर अधिकार कर लिया तथा वह बेबीलोन को रौंदा हुआ भारत के तरफ बढ़ा ।

305 से 304 ईसवी पूर्व में का पुल के मार्ग से होता हुआ वह सिंधु नदी के तरफ बड़ा सिंधु नदी को पार करते ही चंद्रगुप्त की बढ़ती शक्ति से भयभीत हुआ तथा भारत के सम्राट के हाथों पराजित होने का खतरा नहीं लिया इसलिए उसने 305 ईसवी में चंद्रगुप्त से संधि कर लिया तथा अपनी पुत्री हेलेना का विवाह चंद्रगुप्त मौर्य से की । चंद्रगुप्त ने 500 हाथी सेल्यूकस को उपहार में भेजा तथा सेल्यूकस ने अपने राजदूत मेगास्थनीज को पाटलिपुत्र भेजा जो अनेक वर्षों तक पाटलिपुत्र में रहा जिसने अपनी रचना इंडिका में चंद्रगुप्त मौर्य के जीवनी एवं पाटलिपुत्र के बारे में लिखा था।

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